Thursday, February 12, 2009

Tanha (तन्हा)

जीवन के शिखर पर,
जब कोई पहुँच जाए;
तब भी कोई कमी,
कुछ खालीपन उसे सताए।

उसकी आँखों में सूखे,
कुछ उम्मीदों के सागर;
उसकी सांसों में तपते,
कुछ ख्वाहिशों के समंदर।

अपनी तमन्नाओं को मार,
लहू से जिनको सींचा;
उन्होंने ही किया वार,
मौत की तरफ़ खींचा।

अब वो अकेला तन्हा,
खड़ा है चौराहे पर;
सोचता है किधर जाए,
कोई ना उसका यहाँ पर।

-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
१२-०२-०९ 12-02-09

1 comment:

Vaibhav Jain said...

kaafi poems ho gayi 1 book chhapne ke liye :P
this was also good as always :)