This poem is dedicated to my mother, Dr. Shashi Gupta.
वो जो हर पुरुष की पूरक है,
करती उसके लिए व्रत है।
वो जो ममता का सागर है,
वही जो प्रेम की गागर है।
वो जो गरिमा की मिसाल है,
वही जो ज्ञान का भंडार है।
वो जो कहती कुछ नहीं,
वही जो सहती सब कुछ है।
वो जिसे खुद कुछ चाह नहीं,
पर उसे सबकी चाहत का ख्याल है।
वही तो परिवार चलाती है,
हर मुसीबत से भिड़ जाती है।
वो जब दबी-कुचली जाती है,
तब वही रण-चंडी बन आती है।
वो जो करोड़ो में एक है,
वही जो सबसे नेक है।
उसकी उपस्थिति मंगलमय है,
वही जो सर्वप्रिय है।
वो जो समाज का आधार है,
वह और कोई नहीं अर्धांगिनी है।
-प्रत्यूष गर्ग       Pratyush Garg     
२५-०९-०९         25-09-2009
 
 
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