Wednesday, August 19, 2009

Punarjanm (पुनर्जन्म)

This poem is inspired by the book "Many Lives Many Masters" written by Dr. Brian Weiss. Also, this poem is dedicated to my dear friend Divyanshu Tripathi, who made me read that awesome book.


किसी विद्वान से सुना था मैंने कभी,
हर जीवित तन में है आत्मा का वास,
तन नष्ट हो जाते हैं फ़िर भी,
पहुँचे न आत्मा को क्षति कुछ खास ।

समय बदले तन बदले,
आज यहाँ कल वहाँ विराजे,
अलग योनि अलग रूप में,
हर बार संसार को साजे ।

परंतु कर्मों की छाया से,
हो उज्जवलित और धूमिल,
और सारे निर्णयों का फल,
हो अगले जीवन में शामिल ।

विरले होते हैं वो जिनको,
याद रहे ये अगला पिछला,
अपनी आप बीती सुनाने का,
मिले मौका ये निराला ।

कठिन है बहुत स्वीकारना,
इस जीवन-दर्शन को,
पर जिस क्षण हो एहसास,
संजोना उस पल को ।


-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
१९-०८-०९ 19-08-09

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