मोहब्बत के इस मौसम में,
तकदीर का ही सहारा है ।
वर्ना नाकाम आशिकों का जनाज़ा,
बड़ी धूम से सजाना है ।
मौसिकी भी अब पुरानी हुई,
साज़ो-सामान का अब क्या काम ।
हमारी आवाज़ भी उन्हें नागवार लगे,
कैसी बेवफ़ाई का ज़माना है ।
अब हमसे कुछ ना पूछो,
कि आखिर क्या खता हुई ।
शायद हमारा जीना भी उनकी,
नापसंदगी का निशाना है ।
कभी मुलाकात हो तो पूछेंगे,
आखिर हमने क्या गलत किया ।
मोहब्बत ही तो की थी हमने,
नफ़रत का क्यों नज़राना दिया ।
-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
२०-८-२००८ 20-08-2008
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