उनका चेहरा नज़र न आया,
चिलमन जो उनका वफ़ादार था ।
सनम के दीदार की ख़्वाहिश,
दिल में ही दफ़न हो गयी ।
कितना तरसाया चिलमन ने,
रह-रह के तड़पाया चिलमन ने ।
मेरी मोहब्बत की चिंगारी भड़क गयी,
जब कहीं से हवा का झोंका आया ।
खुदा की रोज़ इबादत की हमने,
कि कभी हम भी खुशनसीब हो ।
न जाने हर बार कैसे,
राह में वो चिलमन आया ।
एक रोज़ हम पर इनायत बरसी,
जब उन्हें हमारा ख्याल आया ।
उस चिलमन को राह से हटा,
उनका हसीं चेहरा हमें नज़र आया ।
-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
१३-८-२००८ 13-08-2008
No comments:
Post a Comment