लोग पूछें रे ये बतलावो,
जीवन-दर्शन ये क्या बला है?
आखिर किसने इधर-उधर कब,
कौन नया रूप ढला है?
सबरे पूछें हैरत के मारे,
ऐसा कैसा ये खेल भयो?
कौन खिलाड़ी इसका है,
और कौन खिलाने वाला है?
मैं बोलयो रे मूरख प्राणी,
ये क्या पूछ लिया तूने?
इसका उत्तर देवे ऐसा,
कोई क्या कभी बना है?
संत महात्मा साधू राजे,
सबरे हारे इसके आगे,
हम तुम तुच्छ प्राणी,
भला कहाँ ठहरेंगे सारे?
आज ये समझो बस तुम इतना,
खेल खिलावे ऊपर वाला,
नियम कायदे सारे उसके,
खेलन वाले हम सब सारे।
इस खेल का एक नियम है,
जो खेले सो हर दम हारे,
गर कभी कोई जीत जावे,
"उसका" अवतार होगा वो प्यारे।
-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
०५-०५-२००९ 05-05-2009
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