This poem is written by one of my friends, Mr. Ghanshyam Das Ahuja, who lives in Navi Mumbai. It is written in context with the traffic police's drive against the vehicles which litter on the streets. It is indeed a realistic and motivating attempt.
ट्रेफ़िक पुलिस का ये ड्राइव यकीनन लाएगा रंग,
मानसून ही क्यों हमेशा यही रहे उमंग,
इसी संदर्भ में मेरा है एक बेशकीमती सुझाव,
दुकानदार जो करते हैं कचरा उन पर भी खाओ ताव।
कईयों को मैंने कचरा फेंकते देखा है,
देखा ही नहीं कई बार उन्हें टोका है,
पर जब तलक पड़ेगा नहीं कानून का डंडा,
साफ़ सुथरी रोड के बजाय माहौल रहेगा गंदा।
पार्क/गार्डन में जो लोग करते हैं कचरा,
उन लोगों से है हमारे समाज को खतरा,
काश हर इंसान सलीके से रह सबकी सोचता,
मैं ये कविता ना लिख कुछ और सोचता।
-घनश्याम दास आहुजा
1 comment:
bahut bahut dhanyavaad pratyush ise apne blog mein sthan dene ke liye.
sabhi se anurodh hai padne ke baad apna comment(achha ya bura)jaroor deejiye- ghansham das ahuja
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