This poem is written by one of my friends, Mr. Ghanshyam Das Ahuja, who lives in Navi Mumbai. It is written in context with the traffic police's drive against the vehicles which litter on the streets. It is indeed a realistic and motivating attempt.
ट्रेफ़िक पुलिस का ये ड्राइव यकीनन लाएगा रंग,
मानसून ही क्यों हमेशा यही रहे उमंग,
इसी संदर्भ में मेरा है एक बेशकीमती सुझाव,
दुकानदार जो करते हैं कचरा उन पर भी खाओ ताव।
कईयों को मैंने कचरा फेंकते देखा है,
देखा ही नहीं कई बार उन्हें टोका है,
पर जब तलक पड़ेगा नहीं कानून का डंडा,
साफ़ सुथरी रोड के बजाय माहौल रहेगा गंदा।
पार्क/गार्डन में जो लोग करते हैं कचरा,
उन लोगों से है हमारे समाज को खतरा,
काश हर इंसान सलीके से रह सबकी सोचता,
मैं ये कविता ना लिख कुछ और सोचता।
-घनश्याम दास आहुजा
Sunday, May 24, 2009
Thursday, May 21, 2009
Monday, May 18, 2009
Haara Nahi Mai (हारा नहीं मैं)
Today I was browsing through election news on rediff.com and found this awesome poem in the discussion board segment. It was so good that I could not resist sharing it with you. The poet did not give the title so I gave it one. The name of the poet is Deepank Singhal (as flashing on rediff.com). I assume he wrote it himself and did not copied it from some where which makes him the poet.
हैरान हूँ मैं, पर हताश नहीं हूँ,
परेशान हूँ मैं, पर निराश नहीं हूँ।
फ़िर उगेगा सूरज, पर दिशा अलग होगी,
फ़िर बहेंगी नदियाँ, पर राह अलग होगी।
फ़िर चहचहाएँगे पक्षी, पर चहचहाहट अलग होगी,
फ़िर खिलखिलाएँगे बच्चे, पर खिलखिलाहट अलग होगी।
फ़िज़ा बदलेगी, हवा बदलेगी,
आने वाली सुबह, देश का समां बदलेगी।
आज मैं हारा नहीं हूँ, बस मेरा ’हार’ गया है,
कल मैं फ़िर जीतूँगा, ये वक़्त मुझसे कह गया है।
बदलाव तो विकास का प्रतीक है,
प्रयोग तो लोकतंत्र की नींव है।
करने दो प्रयोग उन्हें, ज़रा वो भी आज़मा लें,
इसी में भारत की जीत है, इसी में मेरी जीत है।
- दीपांक शिंघल
हैरान हूँ मैं, पर हताश नहीं हूँ,
परेशान हूँ मैं, पर निराश नहीं हूँ।
फ़िर उगेगा सूरज, पर दिशा अलग होगी,
फ़िर बहेंगी नदियाँ, पर राह अलग होगी।
फ़िर चहचहाएँगे पक्षी, पर चहचहाहट अलग होगी,
फ़िर खिलखिलाएँगे बच्चे, पर खिलखिलाहट अलग होगी।
फ़िज़ा बदलेगी, हवा बदलेगी,
आने वाली सुबह, देश का समां बदलेगी।
आज मैं हारा नहीं हूँ, बस मेरा ’हार’ गया है,
कल मैं फ़िर जीतूँगा, ये वक़्त मुझसे कह गया है।
बदलाव तो विकास का प्रतीक है,
प्रयोग तो लोकतंत्र की नींव है।
करने दो प्रयोग उन्हें, ज़रा वो भी आज़मा लें,
इसी में भारत की जीत है, इसी में मेरी जीत है।
- दीपांक शिंघल
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Sunday, May 17, 2009
Aaj Jaane Ki Zid Na Karo (आज जाने की ज़िद ना करो)
This beautiful ghazal was sung by renowned Pakistani ghazal singer Fareeda Khanum. This is one of her master-piece and was duplicated several times all over the world. Asha Bhonsle also sung it for a music album. Most recently, the original version of this ghazal was used in the movie Monsoon Wedding by Meera Nair. Here are the lyrics (which was originally given by Fayyaz Hashmi) for this evergreen and legendary ghazal which has stolen my heart for quite some time now.
आज जाने की ज़िद ना करो,
यूँ ही पहलू में बैठे रहो,
आज जाने की ज़िद ना करो,
हाय मर जाएंगे,
हम तो लुट जाएंगे,
ऐसी बातें किया ना करो,
आज जाने की ज़िद ना करो।
तुम ही सोचो ज़रा,
क्यों ना रोके तुम्हें,
जान जाती है जब,
उठ के जाते हो तुम,
तुम को अपनी कसम जाने-जां,
बात इतनी मेरी मान लो,
आज जाने की ज़िद ना करो।
वक्त की कैद में,
ज़िंदगी है मगर,
चंद घड़ियाँ यही हैं,
जो आज़ाद हैं,
इन को खो कर मेरी जाने-जां,
उम्र भर ना तरसते रहो,
आज जाने की ज़िद ना करो।
कितना मासूम,
रंगीन है ये समां,
हुस्न और इश्क की,
आज में राज है,
कल की किसको खबर जाने-जां,
रोक लो आज की रात को,
आज जाने की ज़िद ना करो।
आज जाने की ज़िद ना करो,
यूँ ही पहलू में बैठे रहो,
आज जाने की ज़िद ना करो,
हाय मर जाएंगे,
हम तो लुट जाएंगे,
ऐसी बातें किया ना करो,
आज जाने की ज़िद ना करो।
आज जाने की ज़िद ना करो,
यूँ ही पहलू में बैठे रहो,
आज जाने की ज़िद ना करो,
हाय मर जाएंगे,
हम तो लुट जाएंगे,
ऐसी बातें किया ना करो,
आज जाने की ज़िद ना करो।
तुम ही सोचो ज़रा,
क्यों ना रोके तुम्हें,
जान जाती है जब,
उठ के जाते हो तुम,
तुम को अपनी कसम जाने-जां,
बात इतनी मेरी मान लो,
आज जाने की ज़िद ना करो।
वक्त की कैद में,
ज़िंदगी है मगर,
चंद घड़ियाँ यही हैं,
जो आज़ाद हैं,
इन को खो कर मेरी जाने-जां,
उम्र भर ना तरसते रहो,
आज जाने की ज़िद ना करो।
कितना मासूम,
रंगीन है ये समां,
हुस्न और इश्क की,
आज में राज है,
कल की किसको खबर जाने-जां,
रोक लो आज की रात को,
आज जाने की ज़िद ना करो।
आज जाने की ज़िद ना करो,
यूँ ही पहलू में बैठे रहो,
आज जाने की ज़िद ना करो,
हाय मर जाएंगे,
हम तो लुट जाएंगे,
ऐसी बातें किया ना करो,
आज जाने की ज़िद ना करो।
Wednesday, May 13, 2009
Hum (हम)
मैं और तुम,
हम दोनों,
दुनिया की नज़र में,
दो अलग जिस्म,
दो अलग जान हम।
तुम शायद ना जानो,
शायद ना मानो,
कि हम बने हैं साथ
रहने के लिए,
साथ जीने के लिए।
मेरी आँखें खुली हैं सदा,
इसी इंतज़ार में कि कब,
तुम्हें इल्म हो कि अब,
हम एक हो यही सही है,
वक्त की ज़रूरत है।
कोई गम नहीं मुझे,
अगर वक्त मेरा साथ ना दे,
मोहब्बत में शर्त कैसी?
ये तो है एक पाक एहसास,
जो है ना किसी का मोहताज़।
मुझे फ़िक्र नहीं दुनिया की,
यहाँ सब मतलब के साथी,
अगर हम साथ तो,
हर मुश्किल हर परेशानी,
फूलों की सेज सरीखी।
तुम बस एक बार एक नज़र भर,
कह दो कि मैं और तुम अब हैं हम,
तुम्हारी कसम,
उस पल से पुराने सब किस्से खत्म,
और नए आयाम छूने उड़ चले हम।
-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
१३-०५-०९ 13-05-09
हम दोनों,
दुनिया की नज़र में,
दो अलग जिस्म,
दो अलग जान हम।
तुम शायद ना जानो,
शायद ना मानो,
कि हम बने हैं साथ
रहने के लिए,
साथ जीने के लिए।
मेरी आँखें खुली हैं सदा,
इसी इंतज़ार में कि कब,
तुम्हें इल्म हो कि अब,
हम एक हो यही सही है,
वक्त की ज़रूरत है।
कोई गम नहीं मुझे,
अगर वक्त मेरा साथ ना दे,
मोहब्बत में शर्त कैसी?
ये तो है एक पाक एहसास,
जो है ना किसी का मोहताज़।
मुझे फ़िक्र नहीं दुनिया की,
यहाँ सब मतलब के साथी,
अगर हम साथ तो,
हर मुश्किल हर परेशानी,
फूलों की सेज सरीखी।
तुम बस एक बार एक नज़र भर,
कह दो कि मैं और तुम अब हैं हम,
तुम्हारी कसम,
उस पल से पुराने सब किस्से खत्म,
और नए आयाम छूने उड़ चले हम।
-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
१३-०५-०९ 13-05-09
Tuesday, May 5, 2009
Jeevan-Darshan (जीवन-दर्शन)
लोग पूछें रे ये बतलावो,
जीवन-दर्शन ये क्या बला है?
आखिर किसने इधर-उधर कब,
कौन नया रूप ढला है?
सबरे पूछें हैरत के मारे,
ऐसा कैसा ये खेल भयो?
कौन खिलाड़ी इसका है,
और कौन खिलाने वाला है?
मैं बोलयो रे मूरख प्राणी,
ये क्या पूछ लिया तूने?
इसका उत्तर देवे ऐसा,
कोई क्या कभी बना है?
संत महात्मा साधू राजे,
सबरे हारे इसके आगे,
हम तुम तुच्छ प्राणी,
भला कहाँ ठहरेंगे सारे?
आज ये समझो बस तुम इतना,
खेल खिलावे ऊपर वाला,
नियम कायदे सारे उसके,
खेलन वाले हम सब सारे।
इस खेल का एक नियम है,
जो खेले सो हर दम हारे,
गर कभी कोई जीत जावे,
"उसका" अवतार होगा वो प्यारे।
-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
०५-०५-२००९ 05-05-2009
जीवन-दर्शन ये क्या बला है?
आखिर किसने इधर-उधर कब,
कौन नया रूप ढला है?
सबरे पूछें हैरत के मारे,
ऐसा कैसा ये खेल भयो?
कौन खिलाड़ी इसका है,
और कौन खिलाने वाला है?
मैं बोलयो रे मूरख प्राणी,
ये क्या पूछ लिया तूने?
इसका उत्तर देवे ऐसा,
कोई क्या कभी बना है?
संत महात्मा साधू राजे,
सबरे हारे इसके आगे,
हम तुम तुच्छ प्राणी,
भला कहाँ ठहरेंगे सारे?
आज ये समझो बस तुम इतना,
खेल खिलावे ऊपर वाला,
नियम कायदे सारे उसके,
खेलन वाले हम सब सारे।
इस खेल का एक नियम है,
जो खेले सो हर दम हारे,
गर कभी कोई जीत जावे,
"उसका" अवतार होगा वो प्यारे।
-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
०५-०५-२००९ 05-05-2009
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