जन गण मन रण है इस रण में,
ज़ख्मी भारत का भाग्यविधाता।
पंजाब सिंधु गुजरात मराठा,
इक दूसरे से लड़ के मर रहे हैं।
इस देश ने हम को एक किया और हम देश के टुकड़े कर रहे,
द्राविड़ उत्कल बंगा।
खून बहा कर एक रंग का कर दिया हमने तिरंगा,
सरहदों पे जंग और गलियों में फसाद रंगा।
विंध हिमाचल यमुना गंगा,
में तेज़ाब उबल रहा है|
मर गया सबका ज़मीर,
जाने कब ज़िंदा हो आगे।
फिर भी तब शबनम में जागे,
तव शुभ आशीष माँगे।
आग में जल कर चीख रहा है फिर भी कोई नहीं बचाता,
गाहे तव जय गाथा।
देश का ऐसा हाल है लेकिन,
आपस में लड़ रहे नेता।
जन गण मंगलदायक जय हे,
भारत को बचा ले विधाता।
जय हे या ये मरण है,
जन गण मन रण है।
1 comment:
entitled to ban!!
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