आज वो दुखी है,
उसका दिल टूटा है,
उसका कोई अपना,
आज उस से रूठा है।
आज रिश्तों के कुछ,
मज़बूत बंधन टूटे हैं,
पुराने कुछ धागे उसके,
हाथों से छूटे हैं।
क्या करे वो कहाँ जाए,
किसको अपनी पीड़ा बतलाए,
घर उसके खुशी की दस्तक हुए,
आज एक अरसा बीता है।
नादान था वो,
अभी तक बच्चा था,
सही गलत पहचानने में,
अभी थोड़ा कच्चा था।
वो जिसे अपना समझ,
ताउम्र झुलसता रहा,
वही दगाबाज उसे,
हमेशा ही डसता रहा।
पर अब इंसानी फितरत को,
उसने बखूबी भाँप लिया है,
और संभलने का प्रण कर,
वो दोबारा चल पड़ा है।
-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
०९-११-२००९ 09-11-2009
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