I feel delighted to present to you all, the poem which is written by my dear friend Aishwarya Gupta. He wrote this poem keeping in mind my life incidences and described them in a very beautiful way. He gave this poem to me as a present for completing 100 posts on my blog. I could not resist to post this poem here. Thank You very much Aishwarya for such a wonderful present.
एक समय था जब वो भी सबकी तरह,
वक्त की ओखली में पिसा करता था।
बहुत डरा करता था आने वाले समय से,
अपने मन के खिलाफ़ सारे काम किए जा रहा था।
भ्रमित हो रखा था वो अपने जीवन के लक्ष्य से,
नहीं मिल रही थी वो राह जिस पर हमेशा के लिए चलता रहे।
मतलब की चादर ओढ़े दुश्मन रूपी दोस्त दुश्मन बनते चले गए,
अपने विचारों के साथ वो अकेला रह गया।
धीरे-धीरे उसी अकेलेपन में मिल गई उसे वो राह,
वो चाह जिसे ढूँढने वो अकेला हो चला था।
एक सुबह बनी उमंगों की ऐसी ’इमारत’,
टूट गया उसकी कलम का व्रत।
आज चेहरे पर दिखती है संतुष्टि,
मुस्कान में एक गौरव, आने वाले जीवन से बेफिक्र,
वो लिखता चला जा रहा है,
उसकी कलम का असर किसी और पर ना सही उस पर दिखता जा रहा है।
मैंने कीचड़ में उगते हुए कमल को नहीं देखा पर,
मैंने उसे कवि बनते हुए देखा है।
ऐश्वर्य गुप्ता
०६-०९-०९
जेपी विश्वविद्यालय
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