चक्रव्यूह में घुसने से पहले कौन था मैं और कैसा था, यह मुझे याद ही ना रहे,
चक्रव्यूह में घुसने के बाद मेरे और चक्रव्यूह के बीच सिर्फ जानलेवा निकटता थी इसका मुझे पता ही नही,
चक्रव्यूह में घुसने से पहले कौन था मैं और कैसा था यह मुझे याद ही ना रहेगा,
चक्रव्यूह में घुसने से पहले कौन था मैं और कैसा था यह मुझे याद ही ना रहेगा,
चक्रव्यूह में घुसने के बाद मेरे और चक्रव्यूह के बीच सिर्फ जानलेवा निकटता थी इसका मुझे पता ही नहीं चलेगा,
चक्रव्यूह से बाहर निकलने पर मैं मुक्त हो जाऊं भले ही फिर भी चक्रव्यूह की रचना में फ़र्क ही ना
पड़ेगा,
पड़ेगा,
मरूं या मारूं, मारा जाऊं या जान से मार दूं इसका फैसला कभी ना हो पायेगा,
सोया हुआ आदमी जब नींद में से उठ कर चलना शुरू करता है तब सपनों का संसार उसे दुबारा देख ही ना पाएगा,
इस रोशनी में जो निर्णय की रोशनी है सब कुछ समान होगा क्या?
एक पलडे में नपुंसकता, दूसरे पलडे में पौरुष,
और ठीक तराज़ू के कांटे पर अर्धसत्य ॥
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