जब भी मैं उस इमारत को निहारता था,
मैं पाता था कि मैं उसके सामने बौना था ।
मेरा सपना था कि एक दिन मैं उस ऊँचाई तक पहुँचू,
जिस ऊँचाई पर वो इमारत भी दम तोड़ देती है ।
पर आज जब मैं अपने आप को उसके इतना करीब पाता हूँ,
तो मुझे मेरी सासें उखड़ती मालूम पड़ती हैं ।
उस इमारत को पीछे छोड़ने की फ़ितरत मे मैं,
जीने की अपनी चाहत को पीछे छोड़ आया ।
- प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
२७-३-२००८ 27-03-2008
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