This poem is one of the earliest and best written by our own renowned Hindi poet Dr. Kumar Vishwas. Enjoy...
अमावस की काली रातों में, दिल का दरवाज़ा खुलता है,
जब दर्द की प्याली रातों में, गम आँसू के संग घुलता है,
जब पिछवाड़े के कमरे में, हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक टिक चलती हैं, सब सोते हैं हम रोते हैं,
जब बार बार दोहराने से, सारी यादें चुभ जाती हैं,
जब ऊँच नीच समझाने में, माथे की नस दुख जाती है,
तब इक पगली लड़की के बिन, जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है।
जब पोथे खाली होते हैं, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,
जब गज़लें रास नहीं आतीं, अफ़साने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धूप समेटे, दिन जल्दी ढल जाता है,
जब सूरज का लश्कर छत से, गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा, मन ही मन घुट जाती है,
जब कालेज से घर लाने वाली, पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ, गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मना करने पर भी, पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना मनचाहा हर काम, कोई लाचारी लगता है,
तब इक पगली लड़की के बिन, जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है।
जब कमरे में सन्नाटे की, आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आँखों के नीचे, झांई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो लल्ला दिन भर, कुछ सपनों का सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में, कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते हैं, हम जाते में घबराते हैं,
जब साड़ी पहने लड़की का, एक फ़ोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फ़ोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना, हम को फ़नकारी लगता है,
तब इक पगली लड़की के बिन, जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है।
दीदी कहती हैं कि, उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल में भैय्या, तेरे जैसे प्यारे जस्बात नहीं,
वो पगली लड़की मेरे खातिर, नौ दिन भूखी रहती है,
चुप चुप सारे व्रत करती है, पर मुझ से कभी न कहती है,
जो पगली लड़की कहती है, मैं प्यार तुम्हीं से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना, कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
ये कथा कहानी किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लड़की के संग, जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है।
- डा० कुमार विश्वास