एक दिन ऐसा आएगा,
जब ये सब कुछ नहीं रहेगा,
रह जाएगा तो बस एक पिंजर,
और उसमें कैद एक रूह।
रूह भी इस ताक में कि,
कब मौका मिले तो फुर्र हो,
और पिंजर का क्या है,
उसे तो ख़ाक में ही मिलना है।
मुद्दा ये नहीं कि क्या किया,
मुद्दा ये कि क्या करना रह गया,
ईश्वर द्वारा दिए गए सीमित समय में,
कौन काज संवरना रह गया।
हे बंधुजन, ये सुनो!
मृत्यु की गोद में समाने से पहले,
अपने मकसद को पहचानो,
और उस दिशा में आगे बढ़ो,
क्या पता कल हो न हो।
-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
०३-१०-०९ 03-10-2009
1 comment:
प्रिय ब्लॉगर,
सादर ब्लॉगस्ते,
आपका सन्देश अच्छा लगा.
क्यों आप भी अपन के ब्लॉग पर
पधारें. "एक पत्र मुक्केबाज विजेंद्र
के नाम" आपके अमूल्य सुझाव की
प्रतीक्षा में है.
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