मेरे हाथ की रेखाएँ
कुछ धुँधली कुछ उजली,
और उनके बीच छिपी
मेरे जीवन की पहेली ।
कहते हैं कि सबकी,
किस्मत की कुँजी इन
रेखाओं में ही कहीं,
दबी सी है रहती ।
मुद्दतों से सभी इनके
मायाजाल में हैं बंदी,
आज तलक कोई भी ना
सुलझा पाया ये गुत्थी ।
बचपन से यौवन तक
की मेरी ये कहानी,
जिसकी पटकथा है लिखी
इन रेखाओं की जुबानी ।
मेरे हाथ की रेखाएँ
कुछ उजली कुछ धुँधली,
और उनके बीच छिपी
मेरे जीवन की पहेली ।
-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
२७-०२-०९ 27-02-09
2 comments:
u have maintained ur high standards.. deep thoughts.. well written
awesome dude,kafi acchi poetry karne lage ho...
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