जीवन के शिखर पर,
जब कोई पहुँच जाए;
तब भी कोई कमी,
कुछ खालीपन उसे सताए।
उसकी आँखों में सूखे,
कुछ उम्मीदों के सागर;
उसकी सांसों में तपते,
कुछ ख्वाहिशों के समंदर।
अपनी तमन्नाओं को मार,
लहू से जिनको सींचा;
उन्होंने ही किया वार,
मौत की तरफ़ खींचा।
अब वो अकेला तन्हा,
खड़ा है चौराहे पर;
सोचता है किधर जाए,
कोई ना उसका यहाँ पर।
-प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
१२-०२-०९ 12-02-09
1 comment:
kaafi poems ho gayi 1 book chhapne ke liye :P
this was also good as always :)
Post a Comment