Dedicated to all the martyrs of Mumbai Massacre. May their souls rest in peace.
उस रोज़ सुबह जब मैं जागा,
और अखबार में जो उलझा,
मैनें पाया फ़िर मायानगरी की हवा,
सर्द मौत के झोकों से तर हो,
सुर्ख लाल रंग में सनी,
सभी ओर फ़ैली है |
मैं चौंका, मैं झिझका,
सकते मे मैं फ़िर आया,
लगा सोचने आखिर क्यों,
फ़िर से ये तूफ़ान है आया,
मौत के सौदागरों का रुख,
इस ओर फ़िर हो आया ।
चीखों-चिल्लाहटों का दौर ये,
जो थमने का नाम न ले,
अपनों को खोने का ग़म,
जो फ़ूट-फ़ूट कर बाहर निकले,
ऐसा हमने क्या गुनाह किया,
जो फ़िर से ये दिन दिखलाया ।
इस मन्ज़रे-तबाही के ज़िम्मेदार,
चन्द आस्तीन के साँप हैं,
एहसान फ़रामोशी की ज़िन्दा मिसाल,
इनके कदम ही नापाक हैं,
ज़ख्मो को हरा करने फ़िर से,
यहाँ आने वाले गुस्ताख़ हैं ।
शेरदिल जवान अपने फ़िर से,
आखिरकार जीत ही गये,
उन साँपो को दोज़ख की राह,
बड़ी शान से दिखा गये,
पर कुछ अपने लोग भी,
इस आग में जा शहीद हुए ।
सवाल सिर्फ़ इतना है कि कुछ,
हासिल करने का ये कैसा तरीका है?
बेगुनाहों के खून से हाथ सान अपने,
जन्नते-हूर नसीब करने का क्या सपना है?
- प्रत्यूष गर्ग Pratyush Garg
३०-११-२००८ 30-11-2008
1 comment:
Hey...nice style of writing..gud work..
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